Wednesday, July 15, 2015

एक कविता माँ के नाम


जब आँख खुली
भुने मसाले की खुशबू
और मेरी माँ
मुझसे कह बैठे
सो जाओ
अभी दोपहर ही है ।

चश्मा नहीं था
पर नज़र आया वही,
जैसे बचपन में कहीं सो जाने पर
खुद को मैं बिस्तर पर ही पाती थी ।

एहसास तेज़ हुआ
माँ धुंधली ही रह गई
अब यहाँ से फिर लौट जाने को
जी नहीं करता ।

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